Saturday, 24 August 2019

Rajan kumar das


मैं
शहर सा ....
शान्त ,एकान्त , उपेक्षित
खड़ा हूं तुम्हारे इंतज़ार में

वर्षों बीते ,घर रीते
उम्मीदों के छेद सीते सीते
घास पीली पड़ गयी
इंतजार के घूंट पीते
लौट आओ तुम एक बार
वादा करता हूं मैं
जीवन की आस अभी भी
बाकी है ,देखो इस

जंग लगे ताले को
उम्मीद का अंकुर फूटा है
जिंदगी की ललक
दिखाई देती है नन्हे पौधे में

जब तुम आओगे
जिंदगी की नयी लौ
खुशियों से भर देगी ,इस
घर को एक नयी सुबह.के साथrajankumar94707@gmail.com

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Rajan Kumar das