दोस्ती का फर्ज़ (लेेखक MR, Rajan kumar
May 12, 2019
Rajan कि अपनी दोनों टांगों को लटकाये हुए स्टेशन के प्लेटफार्म पर बैठा हुआ था, भयभीत होता हुआ चारों तरफ इधर उधर देखता हुआ बोला- रामू तुम यहां कैसे? मैं पिता जी को गाड़ी पर छोड़ने आया था वो बनारस जा रहे हैं। बनारस क्यों? रमेश ने पूछा पिता जी का बनारस ट्रांसफर हो गया है।
रमेश अभी तक घबराया हुआ नजर आ रहा था। मैंने फिर पूछा- रमेश तुमने बताया नहीं कि इस वक्त रात्रि के ग्यारह बज रहे हैं और तुम यहां बैठे हुये क्या कर रहे हो? क्या किसी गाड़ी का आने का समय है? कौन है? वो कहां से आ रहा है? तुम्हारा रिश्तेदार है क्या? मैंने सब कुछ पूछ लिया परन्तु मेरी बातें से रमेश के कानों पर जूं तक न रेंगी। मैंने एक बार फिर रमेश को ऊपर से नीचे तक देखा और देखा कि रमेश उदास बिलकुल मौन खड़ा हुआ सोच रहा है। उसकी आंखों में से नीर टपक रहे थे। मैंने उसके मन को टटोल लिया। अवश्य ही रमेश को कोई गहरी चोट लगी है जिसके कारण आज वह स्टेशन के प्लेटफार्म पर पागलों की तरह डोल रहा है।
मैंने फिर कहा- राजन चलो घर नहीं जाओगे क्या? चलो।
राजन ने मेरे दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए कहा- रामू, तुम घर जाओ। मुझको अकेले रहने दो। आज मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है। इस वक्त किसी से बात करने की इच्छा नहीं हो रही है। रामू रामू, तुम जाओ भी ना। इस वक्त मेरी इच्छा कर रही है कि मैं....।
रमेश तुम कहते कहते रुक क्यों गये? क्या बात है? रमेश मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये तुम किस प्रकार की बातें कर रहे हो। रमेश, इस वक्त मैं तुम्हारी हर बात को सुनना चाहता हूं। बोलो कुछ साफ साफ कि तुम्हें किस बात का दुःख है? रमेश तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ। शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूं रमेश। रमेश, ज्यादा देरी क्यों करते हो? रात ज्यादा हो रही है। रामू, पहले तुम ये बताओ कि मुझको एक रात भर के लिए अपने यहां सोने के वास्ते कमरा दोगे?
पहले तो रामू डरा। उसे लगा कि ऐसा तो नहीं कि रमेश ने आज कहीं चोरी की हो या किसी की हत्या की हो जिसके कारण आज ये भागना चाहता है कहीं, या छुपना चाहता है। हो सकता है कि इसके पीछे पुलिस लगी हो, वारंट कटा हो।
लेकिन फिर रामू के मस्तिष्क में ये बात आई कि जिसके साथ मेरी दस साल पुरानी दोस्ती चली आ रही है मेरा फर्ज है कि मैं उसे बचाऊं। मैंने जल्दी से रमेश का हाथ पकड़ कर कहा- रमेश ये कोई पूछने की बात है? घर तुम्हारा ही है। चलो आओ। चलो घर पर बैठेंगे तब हम तुमसे वहां तुम्हारी दुःख की कहानी सुनेंगे, चलो।
रामू डागरी कालेज में क्लर्क की पदवी पर काम कर रहा है। उसके घर में तीन आदमी हैं- रामू के पिता जी और रामू का छोटा भाई जो चौदह साल का है। रामू की मां गोपाल को छः वर्ष का छोड़ कर परलोक चली गई थी। गोपाल का पालन-पोषण रामू और उसके पिता ने किया था।
रामू, तुम जानते हो कि मैं पढ़ने में कैसा हूं। और तुम ये भी जानते हो कि मैं परीक्षा के दिनों में कितनी मेहनत करता हूं। रात और दिन एक कर देता हूं। परन्तु मेरे दिमाग में एक अक्षर भी नहीं बैठता। एक प्रश्न को चार-चार दिन, एक-एक हफ्ता, यहां तक कि महीने लग जाते हैं परन्तु कुछ याद न होता जिसके कारण मुझे फेल होना पड़ता घर वालों की डांट सुननी पड़ती और मास्टरों की नजर में गिरे समझे जाते। रामू, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मुझे बहुत मुश्किल से मास्टरों के हाथ पैर जोड़ने पर 9 क्लास में प्रमोशन मिला और अब मैं दसवें में कई साल से फेल हो रहा हूं। यहां तक दसवें में फेल होने की मैंने एक पंचवर्षीय योजना तैयार कर ली है और अब दूसरी भी पंचवर्षीय योजना तैयार होने जा रही है। मेरे साथ के जितने भी पढ़ने वाले थे सब ऊंची-ऊंची पोस्ट पर चले गये। कोई बाकी है तो वो भी कोई बी.काम. कर रहा है, कोई डिग्री, कोई एमएलसी। लेकिन एक मैं ही ऐसा अभागा हूं जोकि दसवें से आगे नहीं बढ़ पा रहा हूं। जिसको देखो वो यही कह रहा है- रमेश, तुम दसवां पास कर लो। फिर किसी नौकरी पर लग जाना। अब रामू तुम ही बताओ इतना सब कुछ करने पर भी मैं नहीं पास हो पा रहा हूं तो अब और आगे क्या पास हो पाऊंगा। मान लो मैं दसवां पास हो गया तो क्या मुझको नौकरी मिल जायेगी? जबकि इंटर पास-बीए पास नौकरी के लिए हाथ पसारे-पसारे डोल रहे हैं लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिलती तो मुझ अभागे को जोकि पाँच साल से लगातार दसवें में फेल हो रहा है उसको नौकरी कहां मिलेगी। लेकिन रामू, मेरी मां फिर भी पीछे पड़ी है। लोग बाग जितने भी जो कुछ कहते हें अच्छाई के लिये। लेकिन फिर भी मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या कंरू। बार-बार यही इच्छा होती है कि कहीं भाग जाऊं। कुछ खा लूं, आत्महत्या कर लूं। बार-बार मेरे कदम स्टेशन की तरफ बढ़ते हैं। कभी कुएँ की ओर, नदी की ओर बढ़ जाते हैं लेकिन तट पर जाते ही कदम रुक जाते हैं। आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं पड़ती। मां की याद आ जाती है। जिस मां ने मुझे पैदा किया, पाल पोस कर इतना बड़ा किया, जिस मां ने अपने पेट से रोटी काट काट कर मुझे खिलाई, जिस ने मेरे सुख के लिए हर तरह की मुसीबत उठाई, इसीलिए कि एक दिन मेरा लाल कमाने लायक होगा। कमाकर खिलायेगा।
लेकिन एक मैं अभागा कमाकर खिलाने के बजाये आत्महत्या करने जा रहा हूं। यही सोच के कदम रुक जाते हैं कि जिस मां ने मेरे लिए इतना सोचा था, मुझको पाल पोस कर इतना बड़ा किया था, क्या इसलिए कि एक दिन वो मुझको अकेली छोड़कर चला जायेगा,? रामू अगर मैं आत्महत्या कर लूं तो मेरी मां तड़प तड़प कर रोयेगी। रोते-रोते अंधी हो जायेगी। खाना-पीना छूट जायेगा, भूखे मरेगी। मैं ये सब नहीं देखना चाहता रामू। नहीं देखना चाहता रामू।
बाहर से किसी ने आवाजें दी- रामू रामू! रामू ने अपने भाई गोपाल से कहा- गोपाल जरा देखना तो कौन आवाज दे रहा है? गोपाल अभी तक पढ़ रहा था। गोपाल अनमने भाव से उठा। दरवाजा खोल कर देखा- बाहर इंस्पेक्टर खड़ा था। कह रहा था- रामू है? मैं उनसे मिलना चाहता हूं। गोपाल ने भीतर आकर कहा- भैया रतन इंस्पेक्टर आये हैं। वो आपसे मिलना चाहते हैं। "जाओ बुला लाओ," रामू ने कहा।
रमेश ने पूछा- रामू ये रतन इंस्पेक्टर कौन है? रात के बारह बज चुके हैं। इस वक्त आना क्यों हुआ? रमेश तुम रतन को नहीं जानते। ये वही हैं जिन्होंने तुम्हारे साथ आठ साल तक पढ़ा था। आज इंस्पेक्टर बन गये हैं। इनकी बदली हुआ करती है। हो सकता है, कहीं बाहर से आये हों।
इंस्पेक्टर ने भीतर आते हुए कहा- रामू, मैं तुमको गिरफ्तार करने आया हूं। तुम्हारे नाम का वारंट कटा है। तुमने अपने कालेज की एक लड़की के ऊपर झूठा इल्जाम लगाया है। चलो उठो, जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। उठो, देर मत करो। इंस्पेक्टर ने रामू के हाथों में जबरदस्ती हथकड़ी डाल दी और बाहर चलने को कहने लगा।
रमेश ने कहा- इंस्पेक्टर रतन क्या आप अपनी दोस्ती का फर्ज अदा कर रहे हैं? जिसके साथ आपसे घनिष्ठ प्रेम था, आज आप उसके हाथों में हथकड़ी डाले हैं? रतन आपको चाहिए कि आप इनको बचाने का रास्ता निकालें। रतन आपको चाहिए कि आप वारंट फाड़ के फेंक दें। रतन ने कहा- "रमेश मैं मजबूर हूं। मैंने बहुत कोशिश की बचाने की, परन्तु कोई उपाय न निकाल सका तो मुझको मजबूरन आना पड़ा।"
रतन इंस्पेक्टर, रामू के हाथों में हथकड़ी डालते हुए बाहर लिए जा रहा था। रास्ते में दरवाजे पर रामू ने देखा कि रीता अपने दोनों हाथों को पीछे किए खड़ी मुस्करा रही थी। रामू रीता को देखते ही आग बबूला हो गया। रामू कहने लगा- रीता जाओ तुम यहां से निकल जाओ। मुझे नहीं मालूम था कि तुम झूठा प्रेम रचाकर एक दिन मुझे गिरफ्तार करा दोगी।
रीता मुस्कराती हुई आगे बढ़ी और कहने लगी मिस्टर रामू आपको मैं गिरफ्तार कराने नहीं आई हूं बल्कि मैं खुद आपको गिरफ्तार करने आई हूं। रीता ने अपने दोनों हाथों को पीछे से आगे लाते हुए कहा- और ये रहा आपका वारंट। रीता ने गुलाब के फूलों की माला रामू के गले में डाल दी और इंस्पेक्टर के हाथों से हथकड़ी लेकर खोल दी।
रामू ने एक सिरे से अपने चारों और देखा और मुस्कराने लगा। गुलाब के फूलों की खुशबू रामू के नस-नस में दौड़ने लगी, अभी तक जितनी बातें हुई थी रामू उन सब बातों को भूल सा गया। उसके कानों में अपनी मां की आवाज गूंजती हुई सुनाई पड़ी जैसे कि वो कह रही हो कि बेटा रामू मुबारक हो तुमको ये दिन। भगवान तुम दोनों को सदा बनाये रखें, रामू ये आवाज सुनते ही दरवाजे के बाहर झांकने लगा। उसने देखा, वहां मां नहीं है। चन्द्रमा झांक रहा है और आर्शीवाद देने इतने नीचे उतर कर आया।
रमेश अभी तक घबराया हुआ नजर आ रहा था। मैंने फिर पूछा- रमेश तुमने बताया नहीं कि इस वक्त रात्रि के ग्यारह बज रहे हैं और तुम यहां बैठे हुये क्या कर रहे हो? क्या किसी गाड़ी का आने का समय है? कौन है? वो कहां से आ रहा है? तुम्हारा रिश्तेदार है क्या? मैंने सब कुछ पूछ लिया परन्तु मेरी बातें से रमेश के कानों पर जूं तक न रेंगी। मैंने एक बार फिर रमेश को ऊपर से नीचे तक देखा और देखा कि रमेश उदास बिलकुल मौन खड़ा हुआ सोच रहा है। उसकी आंखों में से नीर टपक रहे थे। मैंने उसके मन को टटोल लिया। अवश्य ही रमेश को कोई गहरी चोट लगी है जिसके कारण आज वह स्टेशन के प्लेटफार्म पर पागलों की तरह डोल रहा है।
मैंने फिर कहा- राजन चलो घर नहीं जाओगे क्या? चलो।
राजन ने मेरे दोनों कंधों पर हाथ रखते हुए कहा- रामू, तुम घर जाओ। मुझको अकेले रहने दो। आज मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है। इस वक्त किसी से बात करने की इच्छा नहीं हो रही है। रामू रामू, तुम जाओ भी ना। इस वक्त मेरी इच्छा कर रही है कि मैं....।
रमेश तुम कहते कहते रुक क्यों गये? क्या बात है? रमेश मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि ये तुम किस प्रकार की बातें कर रहे हो। रमेश, इस वक्त मैं तुम्हारी हर बात को सुनना चाहता हूं। बोलो कुछ साफ साफ कि तुम्हें किस बात का दुःख है? रमेश तुम मुझे अपनी कहानी सुनाओ। शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूं रमेश। रमेश, ज्यादा देरी क्यों करते हो? रात ज्यादा हो रही है। रामू, पहले तुम ये बताओ कि मुझको एक रात भर के लिए अपने यहां सोने के वास्ते कमरा दोगे?
पहले तो रामू डरा। उसे लगा कि ऐसा तो नहीं कि रमेश ने आज कहीं चोरी की हो या किसी की हत्या की हो जिसके कारण आज ये भागना चाहता है कहीं, या छुपना चाहता है। हो सकता है कि इसके पीछे पुलिस लगी हो, वारंट कटा हो।
लेकिन फिर रामू के मस्तिष्क में ये बात आई कि जिसके साथ मेरी दस साल पुरानी दोस्ती चली आ रही है मेरा फर्ज है कि मैं उसे बचाऊं। मैंने जल्दी से रमेश का हाथ पकड़ कर कहा- रमेश ये कोई पूछने की बात है? घर तुम्हारा ही है। चलो आओ। चलो घर पर बैठेंगे तब हम तुमसे वहां तुम्हारी दुःख की कहानी सुनेंगे, चलो।
रामू डागरी कालेज में क्लर्क की पदवी पर काम कर रहा है। उसके घर में तीन आदमी हैं- रामू के पिता जी और रामू का छोटा भाई जो चौदह साल का है। रामू की मां गोपाल को छः वर्ष का छोड़ कर परलोक चली गई थी। गोपाल का पालन-पोषण रामू और उसके पिता ने किया था।
रामू, तुम जानते हो कि मैं पढ़ने में कैसा हूं। और तुम ये भी जानते हो कि मैं परीक्षा के दिनों में कितनी मेहनत करता हूं। रात और दिन एक कर देता हूं। परन्तु मेरे दिमाग में एक अक्षर भी नहीं बैठता। एक प्रश्न को चार-चार दिन, एक-एक हफ्ता, यहां तक कि महीने लग जाते हैं परन्तु कुछ याद न होता जिसके कारण मुझे फेल होना पड़ता घर वालों की डांट सुननी पड़ती और मास्टरों की नजर में गिरे समझे जाते। रामू, तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मुझे बहुत मुश्किल से मास्टरों के हाथ पैर जोड़ने पर 9 क्लास में प्रमोशन मिला और अब मैं दसवें में कई साल से फेल हो रहा हूं। यहां तक दसवें में फेल होने की मैंने एक पंचवर्षीय योजना तैयार कर ली है और अब दूसरी भी पंचवर्षीय योजना तैयार होने जा रही है। मेरे साथ के जितने भी पढ़ने वाले थे सब ऊंची-ऊंची पोस्ट पर चले गये। कोई बाकी है तो वो भी कोई बी.काम. कर रहा है, कोई डिग्री, कोई एमएलसी। लेकिन एक मैं ही ऐसा अभागा हूं जोकि दसवें से आगे नहीं बढ़ पा रहा हूं। जिसको देखो वो यही कह रहा है- रमेश, तुम दसवां पास कर लो। फिर किसी नौकरी पर लग जाना। अब रामू तुम ही बताओ इतना सब कुछ करने पर भी मैं नहीं पास हो पा रहा हूं तो अब और आगे क्या पास हो पाऊंगा। मान लो मैं दसवां पास हो गया तो क्या मुझको नौकरी मिल जायेगी? जबकि इंटर पास-बीए पास नौकरी के लिए हाथ पसारे-पसारे डोल रहे हैं लेकिन कहीं नौकरी नहीं मिलती तो मुझ अभागे को जोकि पाँच साल से लगातार दसवें में फेल हो रहा है उसको नौकरी कहां मिलेगी। लेकिन रामू, मेरी मां फिर भी पीछे पड़ी है। लोग बाग जितने भी जो कुछ कहते हें अच्छाई के लिये। लेकिन फिर भी मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या कंरू। बार-बार यही इच्छा होती है कि कहीं भाग जाऊं। कुछ खा लूं, आत्महत्या कर लूं। बार-बार मेरे कदम स्टेशन की तरफ बढ़ते हैं। कभी कुएँ की ओर, नदी की ओर बढ़ जाते हैं लेकिन तट पर जाते ही कदम रुक जाते हैं। आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं पड़ती। मां की याद आ जाती है। जिस मां ने मुझे पैदा किया, पाल पोस कर इतना बड़ा किया, जिस मां ने अपने पेट से रोटी काट काट कर मुझे खिलाई, जिस ने मेरे सुख के लिए हर तरह की मुसीबत उठाई, इसीलिए कि एक दिन मेरा लाल कमाने लायक होगा। कमाकर खिलायेगा।
लेकिन एक मैं अभागा कमाकर खिलाने के बजाये आत्महत्या करने जा रहा हूं। यही सोच के कदम रुक जाते हैं कि जिस मां ने मेरे लिए इतना सोचा था, मुझको पाल पोस कर इतना बड़ा किया था, क्या इसलिए कि एक दिन वो मुझको अकेली छोड़कर चला जायेगा,? रामू अगर मैं आत्महत्या कर लूं तो मेरी मां तड़प तड़प कर रोयेगी। रोते-रोते अंधी हो जायेगी। खाना-पीना छूट जायेगा, भूखे मरेगी। मैं ये सब नहीं देखना चाहता रामू। नहीं देखना चाहता रामू।
बाहर से किसी ने आवाजें दी- रामू रामू! रामू ने अपने भाई गोपाल से कहा- गोपाल जरा देखना तो कौन आवाज दे रहा है? गोपाल अभी तक पढ़ रहा था। गोपाल अनमने भाव से उठा। दरवाजा खोल कर देखा- बाहर इंस्पेक्टर खड़ा था। कह रहा था- रामू है? मैं उनसे मिलना चाहता हूं। गोपाल ने भीतर आकर कहा- भैया रतन इंस्पेक्टर आये हैं। वो आपसे मिलना चाहते हैं। "जाओ बुला लाओ," रामू ने कहा।
रमेश ने पूछा- रामू ये रतन इंस्पेक्टर कौन है? रात के बारह बज चुके हैं। इस वक्त आना क्यों हुआ? रमेश तुम रतन को नहीं जानते। ये वही हैं जिन्होंने तुम्हारे साथ आठ साल तक पढ़ा था। आज इंस्पेक्टर बन गये हैं। इनकी बदली हुआ करती है। हो सकता है, कहीं बाहर से आये हों।
इंस्पेक्टर ने भीतर आते हुए कहा- रामू, मैं तुमको गिरफ्तार करने आया हूं। तुम्हारे नाम का वारंट कटा है। तुमने अपने कालेज की एक लड़की के ऊपर झूठा इल्जाम लगाया है। चलो उठो, जल्दी करो, मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। उठो, देर मत करो। इंस्पेक्टर ने रामू के हाथों में जबरदस्ती हथकड़ी डाल दी और बाहर चलने को कहने लगा।
रमेश ने कहा- इंस्पेक्टर रतन क्या आप अपनी दोस्ती का फर्ज अदा कर रहे हैं? जिसके साथ आपसे घनिष्ठ प्रेम था, आज आप उसके हाथों में हथकड़ी डाले हैं? रतन आपको चाहिए कि आप इनको बचाने का रास्ता निकालें। रतन आपको चाहिए कि आप वारंट फाड़ के फेंक दें। रतन ने कहा- "रमेश मैं मजबूर हूं। मैंने बहुत कोशिश की बचाने की, परन्तु कोई उपाय न निकाल सका तो मुझको मजबूरन आना पड़ा।"
रतन इंस्पेक्टर, रामू के हाथों में हथकड़ी डालते हुए बाहर लिए जा रहा था। रास्ते में दरवाजे पर रामू ने देखा कि रीता अपने दोनों हाथों को पीछे किए खड़ी मुस्करा रही थी। रामू रीता को देखते ही आग बबूला हो गया। रामू कहने लगा- रीता जाओ तुम यहां से निकल जाओ। मुझे नहीं मालूम था कि तुम झूठा प्रेम रचाकर एक दिन मुझे गिरफ्तार करा दोगी।
रीता मुस्कराती हुई आगे बढ़ी और कहने लगी मिस्टर रामू आपको मैं गिरफ्तार कराने नहीं आई हूं बल्कि मैं खुद आपको गिरफ्तार करने आई हूं। रीता ने अपने दोनों हाथों को पीछे से आगे लाते हुए कहा- और ये रहा आपका वारंट। रीता ने गुलाब के फूलों की माला रामू के गले में डाल दी और इंस्पेक्टर के हाथों से हथकड़ी लेकर खोल दी।
रामू ने एक सिरे से अपने चारों और देखा और मुस्कराने लगा। गुलाब के फूलों की खुशबू रामू के नस-नस में दौड़ने लगी, अभी तक जितनी बातें हुई थी रामू उन सब बातों को भूल सा गया। उसके कानों में अपनी मां की आवाज गूंजती हुई सुनाई पड़ी जैसे कि वो कह रही हो कि बेटा रामू मुबारक हो तुमको ये दिन। भगवान तुम दोनों को सदा बनाये रखें, रामू ये आवाज सुनते ही दरवाजे के बाहर झांकने लगा। उसने देखा, वहां मां नहीं है। चन्द्रमा झांक रहा है और आर्शीवाद देने इतने नीचे उतर कर आया।
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